आकार और संख्या दोनों ही दृष्टि से, भारतीय शहरों का विस्तार हो रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसारभारत की 31% (377 मिलियन) आबादी शहरी क्षेत्रों में रह रही हैऔर 2050 तक भारत की 50% से अधिक आबादी के शहरी होने का अनुमान है। शहरीकरण शहरों के विकास की प्रक्रिया है (या तो जनसंख्या में प्राकृतिक वृद्धिया प्रवासया भौतिक विस्तार के माध्यम से)। शहरी केंद्र अवसर मुहैय्या कराते हैं और सेवाओंपूंजी और नॉलेज पूल तक बेहतर पहुंच के कारण लोगोंपूंजी और प्रौद्योगिकी को आकर्षित करते हैं। हालांकिआबादी और घनी बस्तियों का तेजी से प्रवाह शहरों में यातायात की भीड़पर्यावरण प्रदूषण और आवास की कमी जैसी कई समस्याओं को जन्म देता है।

आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय नीतियां बनाता हैविभिन्न एजेंसियों (राज्य और नगरपालिका स्तर पर) की गतिविधियों का समन्वय करता है और शहरी विकास के क्षेत्र में कार्यक्रमों की निगरानी करता है। यह विभिन्न केंद्र समर्थित योजनाओं के माध्यम से राज्यों और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) को वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है। पिछले कुछ दशकों में यह सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं कि शहरीकरण बेहतर ढंग से नियोजित है और शहरों में प्रदान की जाने वाली सेवाएं पर्याप्त गुणवत्ता वाली हैं। हालांकि खराब बुनियादी ढांचे के चलते भारतीय शहरों को उपरोक्त समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

खराब शहरी बुनियादी ढांचे के प्रमुख कारणों में से एक यूएलबी की खराब क्षमता और उनकी राजस्व एकत्र करने की अक्षमता है। शहरी अवसंरचना सेवाओं (2011) के लिए निवेश आवश्यकताओं का अनुमान लगाने हेतु उच्चाधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति ने शहरी बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए 2012-2031 में 39 लाख करोड़ रुपए (2009-10 में) की जरूरत का अनुमान लगाया था। इसलिए केंद्र और राज्यों द्वारा बजटीय परिव्यय शहरीकरण की बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। इसके अलावावर्तमान आवंटन के साथमंत्रालय द्वारा धनराशि का उपयोग नहीं किया जा रहा है। यह योजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित करता हैऔर इसके परिणामस्वरूप शहरों में सेवा स्तर प्रभावित होता है। शासन और वित्तीय क्षमता दोनों के संदर्भ में यूएलबी को सशक्त बनाने की आवश्यकता है। इससे उन्हें यह तय करने में मदद मिलेगी कि किन परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाए और उनके लिए राजस्व को कैसे बढ़ाया जाए। इससे शहरी प्रशासन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी।

शहरी परिवहन प्रशासन नगर स्तर पर अलग-अलग विभागों में बंटा हुआ है जिससे विभिन्न एजेंसियों और भू उपयोग योजना के बीच समन्वय से संबंधित समस्याएं उत्पन्न होती हैं। केंद्र सरकार शहरों में मेट्रो रेल योजनाओं को वित्त पोषित करती है। विभिन्न उच्च स्तरीय निकायों ने सुझाव दिया है कि ऐसी पूंजी गहन परियोजनाओं को स्थापित करने से पहले शहर के स्थानिक पैटर्न के आधार पर शहरी परिवहन के साधनों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। 

इस नोट में मंत्रालय के व्यय, उसके द्वारा कार्यान्वित योजनाओं की स्थिति और शहरी योजना के लिए आवश्यक निवेश से संबंधित मुद्दों पर विचार किया गया है। 

2023-24 के बजट भाषण के अंश[1]

  • टियर-और टियर-शहरों में सार्वजनिक एजेंसियों द्वारा शहरी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए शहरी बुनियादी ढांचा विकास कोष स्थापित किया जाएगा। इस कोष का प्रबंधन राष्ट्रीय आवास बैंक द्वारा किया जाएगा और इसके लिए 10,000 करोड़ रुपए के वार्षिक आवंटन की उम्मीद है।
  • संपत्ति कर सुधारों और उपयोगकर्ता शुल्कों को अलग करके नगरपालिका बांडों के लिए अपनी क्रेडिट योग्यता में सुधार हेतु शहरों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • राज्यों और शहरों को शहरी नियोजन सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा जैसे कि भूमि संसाधनों का कुशल उपयोगपारगमन-उन्मुख विकासऔर शहरी भूमि की उपलब्धता और वहनीयता में वृद्धि।
  • सभी शहरों और कस्बों को सेप्टिक टैंकों और सीवरों की 100% यांत्रिक सफाई के लिए सक्षम बनाया जाएगा। सूखे और गीले कचरे के वैज्ञानिक प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। 

वित्तीय स्थिति[2] 

2023-24 के लिए आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय पर कुल खर्च 76,432 करोड़ रुपए अनुमानित है। यह 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 2.5% अधिक है। 2023-24 में मंत्रालय का राजस्व व्यय 50,434 करोड़ रुपए (कुल व्यय का 66%) और पूंजीगत व्यय 25,997 करोड़ रुपए (कुल बजट का 34%) अनुमानित है। पूंजीगत व्यय मुख्य रूप से मेट्रो परियोजनाओं (23,056 करोड़ रुपए) पर है।

तालिका 1: 2023-24 में आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय का बजटीय आवंटन (करोड़ रुपए में)

 

2021-22 वास्तविक

2022-23 संअ

2023-24 बअ

परिवर्तन (संअ 2022-23 से बअ 2023-24)

राजस्व

80,894

50,865

50,434

-1%

पूंजी

25,946

23,681

25,997

10%

कुल

1,06,840

74,546

76,432

2.5%

नोट: बअ- बजट अनुमान, संअ- संशोधित अनुमान।
स्रोत: मांग संख्या 60, आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय, केंद्रीय बजट 2023-24पीआरएस।  

योजनाओं में व्यय

मंत्रालय शहरी क्षेत्रों में सेवा वितरण में सुधार के लिए कई योजनाओं को लागू करता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (पीएमएवाई-यू), (ii) अटल नवीनीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत), (iii) 100 स्मार्ट सिटी मिशन, (iv) स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (एसबीएम-यू)और (iv) पीएम स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि)। मंत्रालय राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में मेट्रो परियोजनाओं को भी लागू करता है।

रेखाचित्र 1: 2023-24 में मेट्रो परियोजनाओं के बाद पीएमएवाई (शहरी) को सबसे अधिक राशि आवंटित की गई

 image

नोट: एमआरटीएसमास रैपिड ट्रांजिट सिस्टम।
स्रोत: मांग संख्या 60, आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालयकेंद्रीय बजट 2023-24; पीआरएस।

तालिका 2: मंत्रालय को प्रमुख आवंटन

 

2021-22 वास्तविक

2022-23 संअ

2023-24 बअ

परिवर्तन (संअ 2022-23 से बअ 2023-24)

पीएमएवाई (शहरी)

59,963

28,708

25,103

-12.6%

एमआरटीएस और मेट्रो

23,473

20,401

23,175

13.6%

अमृत

7,280

6,500

8,000

23.1%

स्मार्ट सिटीज

6,588

8,800

8,000

-9.1%

एसबीएम (शहरी)

1,952

2,000

5,000

150.0%

पीएम-स्वनिधि

298

434

468

7.8%

डीएवाई-एनयूएलएम

794

550

0.01

-100.0%

अन्य

6,492

7,153

6,686

-6.5%

कुल

1,06,840

74,546

76,432

2.5%

नोट: बअ- बजट अनुमान, संअ- संशोधित अनुमान।
स्रोत: मांग संख्या 60, आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय, केंद्रीय बजट 2023-24पीआरएस।   

मंत्रालय का 2023-24 का आवंटन दो वर्ष पहले खर्च की गई राशि से 30,408 करोड़ रुपए कम हैकमी मुख्य रूप से पीएमएवाई-यू में 34,860 करोड़ रुपए की कटौती के कारण हुई है। पीएमएवाई-यू पर 2021-22 का खर्च पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है (और उस वर्ष के बजट अनुमान का 7.5 गुना)। पीएमएवाई-यू पर विस्तृत चर्चा के लिए आगे के पृष्ठ देखिए। दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (डीएवाई-एनयूएलएम) को 2022-23 के संशोधित अनुमान में 550 करोड़ रुपए की तुलना में 10 लाख रुपए की सांकेतिक राशि आवंटित की गई हैयह 2022-23 में मूल रूप से 900 करोड़ रुपए की बजटीय राशि से भी 39% कम था।

व्यय की प्रवृत्तियां

2013-14 से 2023-24 के दौरान मंत्रालय का व्यय 22% की वार्षिक औसत दर से बढ़ा है (रेखाचित्र 2)। जबकि मंत्रालय के लिए आवंटन में वृद्धि हो रही है, मंत्रालय पूरी धनराशि का उपयोग करने में सक्षम नहीं है (रेखाचित्र 3)। शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने भी यह कहा था और मंत्रालय को सुझाव दिया था कि धनराशि के कम उपयोग से बचे।[3]  यह प्रवृत्ति प्रमुख योजनाओं की प्रगति, साथ ही भविष्य में धनराशि आवंटन पर भी असर कर सकती है।   

रेखाचित्र 2व्यय की प्रवृत्तियां (करोड़ रुपए में)

image

नोट: वर्ष 2012-13 से 2015-16 तक के आंकड़े पूर्ववर्ती आवासन और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय का एक संयोजन हैं। 2022-23 और 2023-24 के मूल्य क्रमशः संशोधित और बजट अनुमान हैं। अन्य सभी आंकड़े वास्तविक हैं।
स्रोत: 2011-12 से 2015-16 तक आवासन और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय की अनुदान मांग; 2013-14 से 2023-24 तक आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की अनुदान मांगपीआरएस।

2016-17 में मेट्रो परियोजनाओं, अमृत और स्मार्ट सिटीज मिशन पर वास्तविक व्यय बजट अनुमानों से अधिक था। इसके अलावा 2021-22 में पीएमएवाई-यू पर वास्तविक व्यय अनुमान (बजट अनुमान- 8,000 करोड़ रुपए और वास्तविक- 59,963 करोड़ रुपए) से 650% अधिक था।   

रेखाचित्र 3मंत्रालय द्वारा धनराशि उपयोग

image 

नोट: वर्ष 2012-13 से 2015-16 तक के आंकड़े पूर्ववर्ती आवासन और शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय का एक संयोजन हैं।
स्रोत: अनुदान की मांग (2012-13 से 2023-24), आवास एवं शहरी मामलों का मंत्रालय; पीआरएस।

विचारणीय मुद्दे

वित्त पोषण की आवश्यकता

शहरी अवसंरचना परियोजनाएं पूंजी गहन होती हैं और इसके लिए न केवल अग्रिम पूंजी निवेश की जरूरत होती है बल्कि हर साल आवर्ती संचालन और रखरखाव व्यय की भी आवश्यकता होती है।

शहरीकरण की वर्तमान दर के साथ शहरी अवसंरचना सेवाओं के लिए निवेश आवश्यकताओं का अनुमान लगाने हेतु उच्चाधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) (2011) ने शहरी बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए 2012-2031 में 39 लाख करोड़ रुपए (2009-10 में) की जरूरत का अनुमान लगाया था।[4] समिति के फ्रेमवर्क के अनुसारशहरी बुनियादी ढांचे में निवेश 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद के 0.7% से बढ़कर 2031-32 तक सकल घरेलू उत्पाद का 1.1% होना चाहिए। 2021-22 में राज्यों और केंद्र द्वारा शहरी विकास पर कुल व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% होने का अनुमान है।[5],[6]  वित्त मंत्रालय (2017) ने कहा था कि केवल बजटीय परिव्यय से बुनियादी ढांचे में सुधार की बढ़ती मांगों को पूरा नहीं किया जा सकता, जो स्थानीय सरकारों से की जा रही हैं।[7]  फंडिंग गैप को पूरा करने के लिए केंद्रीय आवंटन के अलावा वित्तपोषण के अन्य स्रोतों की भी मदद लेनी होगी।

व्यय की जरूरतों को पूरा करने के लिए वैकल्पिक उपायों का पता लगाने का प्रयास किया गया है। स्मार्ट सिटीज मिशनअमृत जैसी योजनाएं वित्त पोषण को कई स्रोतों के मिश्रण से पूरा करने का प्रयास करती हैं, जैसे म्यूनिसिपल बॉन्ड और सार्वजनिक निजी भागीदारी। आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय म्यूनिसिपल बांड जारी करने के लिए यूएलबी को वित्तीय प्रोत्साहन भी प्रदान करता है।[8] आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि लखनऊ और गाजियाबाद जैसे कुछ नगर निगमों ने क्रेडिट रेटिंग मूल्यांकन किया है और बाजार से सफलतापूर्वक धन जुटाया है।[9]  

कई शहर ऋण योग्य नहीं

अमृत के तहत सुधारों में से एक शहरों के लिए क्रेडिट रेटिंग है। यूएलबी के लिए बाजार और वित्तीय संस्थानों से धन जुटाने हेतु क्रेडिट रेटिंग एक पूर्व-आवश्यकता है।[10]  मंत्रालय (2018) ने कहा कि म्यूनिसिपल बांड बाजार में शहरों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने की काफी संभावनाएं हैं।10   हालांकि इनका दोहन नहीं किया गया है। दिसंबर 2022 तक 470 शहरों में क्रेडिट रेटिंग का काम पूरा हो चुका है और 164 शहरों (35%) को निवेश योग्य क्रेडिट रेटिंग प्राप्त हो गई है (इससे यूएलबी म्यूनिसिपल बॉन्ड जारी कर पाती हैं)।[11]

सरकारी हस्तांतरणों पर अधिक निर्भरता

एसएफसी और यूएलबी

संविधान के अनुच्छेद 243I में राज्य सरकारों को 1994 से हर पांच साल के बाद एसएफसी नियुक्त करना होता है।[12]   15वें वित्त आयोग ने पाया कि अधिकांश राज्य सरकारों ने समय पर एसएफसी का गठन नहीं किया और एसएफसी के सुझावों को उचित महत्व नहीं दिया।[13]  जिन राज्यों में एसएफसी ने यूएलबी को हस्तांतरण का सुझाव दिया है, वहां राज्यों के बीच भिन्नताएं हैं।[14] जैसे कर्नाटक के चौथे एसएफसी ने यूएलबी को विभाज्य पूल का 10.7 देने का सुझाव दिया जबकि केरल के पांचवे एसएफसी ने 5.5% और पश्चिम बंगाल के चौथे एसएफसी ने 1% का सुझाव दिया।

वित्तीय स्वायत्तता के मामले में भारत में यूएलबी विश्व स्तर पर सबसे कमजोर हैं क्योंकि उनके कर वसूलने के अधिकार पर राज्य सरकार का नियंत्रण है।[15]  74वां संविधान संशोधन राज्य सरकारों को अनुमति देता है कि वे यूएलबी को कुछ करशुल्कटोल और फीस लगानेएकत्र करने और विनियोजित करने के लिए अधिकृत कर सकती हैं। राज्य सरकार द्वारा एकत्र की गई ऐसी धनराशि यूएलबी को सौंपी जानी चाहिए। राज्य़ों को राज्य वित्त आयोग (एसएफसी) का गठन करना होता है जोकि यूएलबी को कर राजस्व और अनुदान सहायता के हस्तांतरण के संबंध में सुझाव देती हैं।[16]  हालांकि आरबीआई (2022) ने पाया कि राज्यों की तरफ से यूएलबी को राजस्व एकत्र करने की शक्तियो का हस्तांतरण सीमित कर दिया गया है।15 यूएलबी के लिए राजस्व के स्रोतों में उपयोगकर्ता शुल्कसंपत्ति की बिक्री और लाइसेंस और परमिट शामिल हैं। यूएलबी के कुल राजस्व में स्वयं राजस्व (कर और गैर-कर) के हिस्से में समय के साथ गिरावट आई है जो सरकारी हस्तांतरण पर वित्तीय निर्भरता को दर्शाता है।15 यूएलबी जिन करों को पहले वसूलते थे (जैसे चुंगी कर, स्थानीय निकाय कर), उन्हें जीएसटी में समाहित कर दिया गया है, इसलिए हस्तांतरणों पर निर्भरता बढ़ी है। संपत्ति कर यूएलबी के लिए एकमात्र प्रमुख कर स्रोत बना हुआ है। ब्रिक्स देशों मेंब्राजील और रूस में स्थानीय सरकारें ज्यादातर सरकारी अनुदानों पर निर्भर हैंजबकि चीन और दक्षिण अफ्रीका में वे अपने वित्त के लिए हस्तांतरणों पर कम निर्भर हैं।15 

तालिका 3: शहरी स्थानीय सरकारों के कुल व्यय में स्वयं राजस्व का हिस्सा (करोड़ रुपए में)

वर्ष

कुल नगरपालिका व्यय

कुल स्वयं राजस्व

कुल व्यय में स्वयं राजस्व का हिस्सा

2010-11

64,193

37,304

58%

2011-12

70,380

42,633

61%

2012-13

82,702

52,543

64%

2013-14

93,298

58,249

62%

2014-15

1,06,917

63,418

59%

2015-16

1,18,938

70,223

59%

2016-17

1,24,007

72,067

58%

2017-18

1,32,553

73,331

55%

स्रोतः स्टेट ऑफ म्यूनिसिपल फाइनेंस इन इंडियाआईसीआरआईईआर, 15वें वित्त आयोग द्वारा कराया गया अध्ययन; पीआरएस।

रेखाचित्र 4: सकल घरेलू उत्पाद के % के रूप में नगरपालिका का स्वयं राजस्व

image

स्रोतः स्टेट ऑफ म्यूनिसिपल फाइनेंस इन इंडियाआईसीआरआईईआर, 15वें वित्त आयोग द्वारा कराया गया अध्ययन; पीआरएस।

रेखाचित्र 5: पिछले कुछ वर्षों में स्वयं राजस्व का हिस्सा कम हुआ है

image

स्रोतः स्टेट ऑफ म्यूनिसिपल फाइनेंस इन इंडियाआईसीआरआईईआर, 15वें वित्त आयोग द्वारा कराया गया अध्ययन; पीआरएस।

संपत्ति कर संग्रह की निम्न दर

स्थानीय सरकारों के लिए संपत्ति कर विश्व स्तर पर राजस्व बढ़ाने के सबसे महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है (रेखाचित्र 7)।15 2017-18 में भारत में यह नगरपालिका कर राजस्व का लगभग 60% था।14 अन्य देशों की तुलना में भारत में संपत्ति कर संग्रह कई कारणों से बहुत कम हैजैसे कि संपत्ति का कम मूल्यांकन और अप्रभावी प्रशासन। छोटे नगर निगमों में संपत्ति कर संग्रह बढ़ाने के लिए सुधार करने की संस्थागत क्षमता का अभाव है और उन्हें इसके लिए राज्य सरकार की सहायता की जरूरत हो सकती है।15 बड़े निगमों के लिए कर आधार का विस्तार और कर संग्रह की बढ़ती दक्षता सेटेलाइट फोटोग्राफी जैसी तकनीकों के उपयोग के माध्यम से की जा सकती है।15  

15वें वित्त आयोग (2021-26) ने शहरी स्थानीय निकायों के लिए पांच वर्षों में 1.21 लाख करोड़ रुपए के अनुदान का सुझाव दिया है।13 वर्ष 2022-23 से अनुदान प्राप्त करने के लिए राज्यों को संपत्ति कर संग्रह में लगातार सुधार करने की जरूरत होगी। पात्रता मानदंडों को पूरा करने के लिए, पिछले वर्ष के संपत्ति कर को हाल के पांच वर्षों में राज्य की अपनी जीएसडीपी की औसत वृद्धि दर के साथ बढ़ना चाहिए।

रेखाचित्र 6: कुल नगरपालिका राजस्व में संपत्ति कर का हिस्सा (% में)                                    

image 

स्रोतः स्टेट ऑफ म्यूनिसिपल फाइनेंस इन इंडियाआईसीआरआईईआर, 15वें वित्त आयोग द्वारा कराया गया अध्ययन; पीआरएस।

रेखाचित्र 7: 2016 में सकल घरेलू उत्पाद के % के रूप में संपत्ति कर

image

स्रोतविश्व बैंकपीआरएस। 

यूएलबी में वित्तीय पारदर्शिता का अभाव

आरबीआई (2022) ने कहा है कि भारत में अधिकांश नगर पालिकाओं की बैलेंस शीट सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं और उनमें से कई अब भी नकद एकाउंटिंग प्रणाली का इस्तेमाल कर रही हैं।15 नगरपालिका कानून किसी भी एक समान एकाउंटिंग मानकों को निर्दिष्ट नहीं करते, जिनका पालन किया जाना चाहिए। इसके कारण राज्यों में परस्पर और भीतर भी, नगरपालिकाओं के बीच तुलना करना मुश्किल होता है।15 नगरपालिकाओं के लेनदेन के सही, पूर्ण और सटीक रिकॉर्ड को सुनिश्चित करने तथा वित्तीय रिपोर्ट तैयार करने के लिए फरवरी 2022 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने 11वें वित्त आयोग के सुझावों के आधार पर यूएलबीज़ के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया।15 टास्क फोर्स ने एक एकाउंटिंग प्रणाली का सुझाव दिया जिसके कारण दिसंबर 2004 में राष्ट्रीय नगरपालिका एकाउंटिंग मैनुअल (एनएमएएम) बना। एक नगरपालिका लेखा नियमावली को संबंधित राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है। आरबीआई ने कहा कि 14 राज्यों में से केवल 9 में (जिनके बारे में कैग की रिपोर्ट में राज्य नगरपालिका एकाउंटिंग मैनुअल को अपनाने से संबंधित जानकारी उपलब्ध है) संबंधित राज्य सरकार ने नगरपालिका एकाउंटिंग मैनुअल को मंजूर किया है।15 इस प्रकार राज्यों में एक समान एकाउंटिंग फ्रेमवर्क लागू करने की जरूरत है।15  

नगरपालिका प्रशासन की क्षमता

यूएलबी आवास, पानी, स्वच्छता, बिजली और परिवहन जैसी जरूरी सेवाएं प्रदान करके शहरी प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शहरी अवसंरचना सेवाओं (2011) के लिए निवेश आवश्यकताओं का अनुमान लगाने हेतु उच्चाधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि भारतीय शहरों और कस्बों में सेवा वितरण की स्थिति वांछनीय स्तरों की तुलना में अपर्याप्त है। शहरी विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि यूएलबी ने एसबीएम-यू जैसी लक्षित योजनाओं को लागू करने में यथोचित रूप से अच्छा काम किया है लेकिन वे स्मार्ट सिटीज मिशन जैसी योजनाओं को लागू करने में सक्षम नहीं हैं जहां अधिकांश नियोजन निर्णय उन्हीं पर छोड़े गए हैं।3  कमिटी ने उल्लेख किया था कि यूएलबी स्मार्ट सिटीज मिशन जैसी परियोजनाओं पर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं। 

यूएलबी सशक्त नहीं हैं

हालांकि मंत्रालय ने सेवा वितरण में सुधार के लिए स्मार्ट सिटीज मिशन और पीएमएवाई-यू जैसी कई योजनाएं शुरू की हैं लेकिन ऐसी सेवाओं की गुणवत्ता अभी भी अपर्याप्त है। इसके प्रमुख कारणों में से एक यूएलबी की क्षमता की कमी हो सकती है। 74वें संविधान संशोधन में राज्य सरकारों को शहरी विकास से संबंधित कुछ कार्यों (जैसे शहरी स्वच्छता, जल आपूर्ति और सड़क एवं पुल) को यूएलबी को सौंपने की अनुमति दी गई है।[17]  एचपीईसी (2011) ने कहा था कि संशोधन के तहत यह राज्य सरकारों के विवेकाधीन है कि वे इन कार्यों को यूएलबी को सौंपें।4 समिति ने यह कहा था कि राज्यों ने केवल आंशिक रूप से कार्यों का हस्तांतरण किया। 

उदाहरण के लिए कैग (2020 और 2021) ने कहा कि कर्नाटक और राजस्थान ने 18 कार्यों (12वीं अनुसूची में निर्दिष्ट) में से क्रमशः 17 और 16 कार्यों को हस्तांतरित किया।[18],[19]कर्नाटक में सौंपे गए कार्यों में शहरी नियोजन और स्लम सुधार में यूएलबी की कोई भूमिका नहीं थी जो उन्हें सौंपे जाने वाले कार्य हैं। जल आपूर्ति, सार्वजनिक स्वास्थ्य और शहरी सुविधाओं जैसे कार्यों में यूएलबी की या तो न्यूनतम भूमिका थी या ऐसे कार्य अन्य एजेंसियों को भी दिए गए थे। राजस्थान में यूएलबी की जल आपूर्ति, शहरी नियोजन, सड़कों और पुलों और सार्वजनिक स्वास्थ्य स्वच्छता में न्यूनतम भूमिका थी या दूसरी एजेंसियों को भी ऐसे कार्य दिए गए थे। कैग ने संबंधित राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया कि यूएलबी को सौंपे गए कार्यों के संबंध में पर्याप्त स्वायत्तता दी जाए।

आवासन

पीएमएवाई-यू

केंद्र सरकार ने शहरी क्षेत्रों के भीतर सभी के लिए आवास प्रदान करने हेतु जून 2015 में पीएमएवाई-यू की शुरुआत की थी। यह योजना पहले 31 मार्च2022 तक लागू थी। अगस्त 2022 में कुछ राज्यों द्वारा योजना के अंतिम दो वर्षों में घरों के निर्माण के प्रस्ताव प्रस्तुत करने के कारण इस योजना को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ा दिया गया था। 2023-24 में पीएमएवाई-यू को 25,103 करोड़ रुपए (मंत्रालय का उच्चतम आवंटन) आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 12.6% कम है। 2021-22 में पीएमएवाई-यू के लिए वास्तविक आवंटन 59,963 करोड़ रुपए था जो 2021-22 के बजट अनुमानों (8,000 करोड़ रुपए) से 650% अधिक है। यह केंद्रीय घटक की अन्य मदों पर व्यय में 4,447% (33,329 करोड़ रुपए) की अत्यधिक बढ़ोतरी के कारण है जिसमें पीएमएवाई-यू के लिए स्थापना व्यय, क्षमता निर्माण और अन्य व्यय शामिल हैं।

इस योजना के चार घटक हैं: (i) निजी भागीदारी के माध्यम से मौजूदा स्लम निवासियों का इन-सीटू पुनर्वास (स्लम्स के तहत मौजूदा भूमि का उपयोग स्लम निवासियों को घर उपलब्ध कराने के लिए), (ii) आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस), निम्न आय वर्ग (एलआईजी) और मध्यम आय वर्ग (एमआईजी) के लिए क्रेडिट लिंक्ड सबसिडी योजना (सीएलएसएस), (iii) साझेदारी में किफायती आवास (एएचपी), और (iv) लाभार्थी के नेतृत्व वाले व्यक्तिगत मकान निर्माण के लिए सबसिडी

अनेक मकानों की नींव रखी गई, लेकिन पूरे नहीं किए गएआवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने पीएमएवाई-यू की प्रगति का विश्लेषण करते हुए कहा कि मकानों के निर्माण की कोई कड़ी समय सीमा नहीं दी गई।9  कुछ राज्यों में निर्माण के लिए जरूरी भूमि का अधिग्रहण भी नहीं किया गया है। निर्माण के लिए जिन मकानों की नींव रखी गई (निर्माण जारी है), उनकी संख्या, पूरे बने मकानों से अधिक है। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश में 23 जनवरी, 2023 तक, 21 लाख स्वीकृत मकानों में 19 लाख की नींव रखी गई है (उनका निर्माण कार्य जारी है) (93%) और 7 लाख मकानों का निर्माण पूरा हुआ है/को सौंपा गया है (32%)।[20]  महाराष्ट्र में 15 लाख स्वीकृत मकानों में 10 लाख की नींव रखी गई (उनका निर्माण कार्य जारी है) (69%) और 7 लाख मकानों का निर्माण पूरा हुआ है/को सौंपा गया है (49%)। उसने मंत्रालय को सुझाव दिय़ा कि वह निर्माणाधीन मकानों का काम पूरा करने के लिए कड़ी समय सीमा प्रदान करें।

रेखाचित्र 8: पीएमएवाई-यू के सात वर्षों के बाद, 120 लाख स्वीकृत घरों में से 68 लाख (56%) पूर्ण हुए

image 

स्रोतः प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) - सभी के लिए आवास (एचएफए) की राज्य/केंद्र शासित प्रदेशानुसार प्रगति, 23 जनवरी, 2023 तकपीआरएस।

मकानों की अच्छी क्वालिटीपीएमएवाई-यू दिशानिर्देशों के अनुसार, स्लम पुनर्वास और एएचपी घटकों के तहत निर्मित सभी घरों में पानी, स्वच्छतासीवरेज और बिजली जैसी बुनियादी नागरिक अवसंरचना होनी चाहिए।[21] यूएलबी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सीएलएसएस और लाभार्थी के नेतृत्व वाले वर्टिकल के तहत अलग-अलग मकानों की बुनियादी सेवाओं तक पहुंच हो। आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने इस बात का उल्लेख किया कि पीएमएवाई-यू के तहत निर्मित कई मकान रहने योग्य स्थिति में नहीं हैं। उनमें खिड़कियां और दरवाजे गायब हैं।9 मकानों के रहने लायक न होने के मामले में मंत्रालय ने कहा कि तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत लगभग 96,000 घर खाली पड़े हैं जिसके कारण उनकी स्थिति खराब है।31  मंत्रालय ने संबंधित राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया है कि वे इन घरों की मरम्मत करें और उन्हें लाभार्थियों को आवंटित करें या शहरी प्रवासियों/गरीबों को किराये पर देने के लिए उन्हें किफायती किराये के आवासीय परिसरों (एआरएचसी) में परिवर्तित करें। कैग (2022) ने कर्नाटक में पीएमएवाई (यू) के तहत निर्मित मकानों का ऑडिट करते समय पाया कि एएचपी वर्टिकल के तहत निर्मित कुछ घर पानी, सीवरेज और बिजली जैसी सुविधाओं की कमी के कारण खाली थे।[22]  ऐसा संबंधित यूएलबी द्वारा धनराशि जारी न करने के कारण था। 

आवंटित मकानों में कार्यान्वयन संबंधी समस्याएं

पीएमएवाई-यू दिशानिर्देश पात्र लाभार्थियों की पहचान करने के लिए कुछ मानक निर्धारित करते हैं जैसे लाभार्थी परिवार में पतिपत्नी और अविवाहित बेटे और/या अविवाहित बेटियां शामिल होनी चाहिए।[23]  इसके अलावा परिवार के पास पक्का घर नहीं होना चाहिए। लाभार्थियों की पहचान में कुछ अनियमितताएं हुई हैं। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश में पीएमएवाई-यू का लाभ प्रदान करने वाले 16 लाभार्थियों को जिला कलेक्टर द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था।[24]  बाद में लाभार्थियों ने प्राप्त अनुदान राशि संबंधित यूएलबी को वापस कर दी। इसके अलावा कैग (2022) ने कर्नाटक में पीएमएवाई-यू के तहत लाभार्थियों के आवंटन से संबंधित कई समस्याओं पर गौर किया जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं (i) लाभार्थियों को समान/विभिन्न वर्टिकल के तहत कई लाभ मिल गए और (ii) अपात्र लोगों को लाभ दिए गए।[25] 

शहरी परिवहन

शहरी परिवहन के लिए खंडित दृष्टिकोण

केंद्रीय स्तर पर शहरी परिवहन की देखरेख के लिए आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय नोडल मंत्रालय है। चूंकि शहरी विकास राज्य का विषय है, इसलिए शहरी परिवहन बुनियादी ढांचे और सेवा वितरण की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों और स्थानीय निकायों की है।

राष्ट्रीय परिवहन विकास नीति समिति (एनटीडीपीसी)2013 ने कहा था कि भारत की परिवहन नीति सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच बंटी हुई है।[26] ऐसी व्यवस्था सरकार के सभी स्तरों पर इंटरमोडल योजना और निष्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है और कई अकुशलताओं को जन्म देती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) रेल नेटवर्क माल की लास्ट माइल डिलीवरी के लिए सड़क नेटवर्क से जुड़े हुए नहीं है, (ii) शहरी क्षेत्रों में बस और मेट्रो सिस्टम लोगों का आदान-प्रदान नहीं करते और (iii) बंदरगाहों में हमेशा माल की निकासी का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होता। शहरी स्तर पर शहरी परिवहन के घटकों के प्रबंधन में कई एजेंसियां शामिल होती हैं।[27]  उदाहरण के लिए मुंबई की परिवहन प्रणाली की निगरानी नगरपालिका/महानगरीय प्राधिकरणोंराज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों के संयोजन द्वारा की जाती है। जैसे सड़क व्यवस्था का प्रबंधन मुंबई महानगर विकास प्राधिकरण और महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम सहित कई एजेंसियों द्वारा किया जाता है। शहरी परिवहन के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की कमी भी समन्वित भूमि उपयोग योजना की संभावनाओं को प्रभावित करती है।

राष्ट्रीय शहरी परिवहन नीति, 2006 में कहा गया है कि परिवहन को नियंत्रित करने वाली वर्तमान प्रणाली एजेंसियों के बीच समन्वय प्रदान नहीं करती है।[28]  उसने परिवहन कार्यक्रमों और परियोजनाओं की समन्वित योजना और कार्यान्वयन और शहरी परिवहन प्रणालियों के एकीकृत प्रबंधन के लिए सभी मिलियन-प्लस शहरों में एकीकृत मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी (यूएमटीए) स्थापित करने का सुझाव दिया। मेट्रो रेल नीति, 2017 में प्रावधान है कि राज्य सरकारों को वैधानिक निकायों के रूप में यूएमटीए का गठन करना चाहिए।[29] आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा कि बेंगलुरू, कोच्चिपुणे और चेन्नई जैसे कुछ शहरों ने अपने संबंधित यूएमटीए स्थापित किए हैं।[30]  

शहरी परिवहन मेट्रो परियोजनाओं पर केंद्रित

शहरों में मेट्रो परियोजनाओं में निवेश शहरी परिवहन पर मंत्रालय द्वारा किए गए सबसे बड़े खर्चों में से एक है। कुछ प्रमुख मेट्रो परियोजनाओं में चेन्नईदिल्लीबेंगलुरू और मुंबई मेट्रो शामिल हैं। इन परियोजनाओं में निवेश विभिन्न रूपों में किया जाता हैजिसमें बाहरी सहायता प्राप्त परियोजनाओं के लिए अनुदानइक्विटी निवेशऋण और पास-थ्रू सहायता (सरकार को दिया जाने वाला अनुदान जो अन्य संगठनों को दिया जा सकता है) शामिल हैं। 2023-24 में मेट्रो परियोजनाओं को 23,175 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैंजो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 13.6% अधिक है।

किराए से इतर स्रोतों से राजस्व बढ़ाने की जरूरत मेट्रो परियोजनाओं के लिए राजस्व के स्रोत दो प्रकार के होते हैं- फेयर बॉक्स (टिकटों की बिक्री) और नॉन-फेयर बॉक्स (जैसे भूमि का व्यावसायिक विकासविज्ञापन राजस्व)। मेट्रो रेल नीति, 2017 में कहा गया है कि मेट्रो परियोजनाओं की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट में नॉन-फेयर बॉक्स राजस्व बढ़ाने का प्रावधान होना चाहिए।29 संबंधित राज्य सरकार को मेट्रो परियोजनाओं को नीतिगत संरचना और जरूरी अनुमतियां एवं लाइसेंस प्रदान करना चाहिए ताकि वे नॉन-फेयर बॉक्स से विभिन्न प्रकार के राजस्व अर्जित करने के तरीके ढूंढ सकें।29

भारतीय मेट्रो रेल प्रणालियों द्वारा उत्पन्न कुल राजस्व का एक बड़ा हिस्सा किराये का होता है। उदाहरण के लिए दिल्ली मेट्रो के कुल राजस्व में फेयर बॉक्स का अनुपात 2005-16 में 24% से 2019-20 में 57% तक था। कोच्चि मेट्रो के लिए यह 2017-18 में 78% और 2019-20 में 60% था।30 मुंबई मेट्रो लाइन 1 ने 2014-15 से अपने राजस्व का 86-89% किराये से हासिल किया (कोविड-19 वर्ष को छोड़कर)।30 आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) के अनुसार, राजस्व में किराए के घटक के अधिकतम होने से यात्रियों की संख्या पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और यह मेट्रो को बड़े पैमाने पर जन परिवहन प्रणाली बनने से रोक सकता है।30 कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह मेट्रो परियोजनाओं को नॉन-फेयर कलेक्शन के नए रास्ते तलाशने के लिए राजी करे। संपत्ति विकास और स्टेशनों पर व्यावसायिक प्रतिष्ठान स्थापित करना मेट्रो परियोजनाओं के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत रहा है।30 राजस्व उत्पन्न करने के लिए संपत्ति विकास और वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों का उपयोग करने के उल्लेखनीय उदाहरण हांगकांग और टोक्यो हैं।29     

दिल्ली मेट्रो के मामले में कमिटी (2022) ने कहा कि ब्रेक इवन के लिए आवश्यक औसत दैनिक आय के लक्ष्य को पूरा करने और औसत दैनिक सवारियों में वृद्धि के बावजूद यह शुद्ध घाटा उठा रही है (रेखाचित्र देखें)।30 उसने दिल्ली मेट्रो को नॉन-फेयर राजस्व बढ़ाने का सुझाव दिया। मंत्रालय ने कमिटी को सूचित किया (2022) कि उसने मेट्रो रेल निगमों से नॉन-फेयर स्रोतों से राजस्व बढ़ाने का अनुरोध किया है।[31] उसने कमिटी को यह भी बताया कि दिल्ली मेट्रो ने कई उपाय किए हैं और कई की योजना बना रही है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) मेट्रो स्टेशनों की को-ब्रांडिंग, (ii) स्टेशनों पर दुकानोंएटीएमकियोस्ककार्यालयों के लिए स्पेस की लाइसेंसिंगऔर (iii) भीतरी सुरंगों में डिजिटल विज्ञापन पैनल के लिए गुंजाइश तलाशना।31     

रेखाचित्र 9: दिल्ली मेट्रो के लिए कर उपरांत घाटा (करोड़ रुपए में)

image

स्रोत: रिपोर्ट संख्या 12: मेट्रो रेल परियोजनाओं का कार्यान्वयन- एक मूल्यांकनआवास एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी, 7 अप्रैल, 2022; पीआरएस।      

मेट्रो की उच्च पूंजी-गहन प्रकृति: मेट्रो परियोजनाएं प्रकृति में अत्यधिक पूंजी गहन हैं। 2023-24 में मेट्रो परियोजनाओं पर पूंजीगत व्यय 23,056 करोड़ रुपए होने का अनुमान है जो मंत्रालय द्वारा कुल पूंजीगत व्यय (25,997 करोड़ रुपए) का 89% है। मेट्रो प्रणाली के आधार पर मेट्रो के निर्माण की प्रति किमी लागत 37 करोड़ रुपए से लेकर 1,126 करोड़ रुपए तक होती है।30 दिल्ली मेट्रो के नुकसान को देखते हुए आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि सिर्फ आर्थिक आधार पर मेट्रो परियोजनाओं का आकलन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसके अन्य लाभ भी हैं, जैसे प्रदूषण और यातायात को कम करना और किफायती परिवहन समाधान प्रदान करना।30    

मेट्रो नीति 2017 में कहा गया है कि मेट्रो शुरू करने से पहले विभिन्न विकल्पों का एक निष्पक्ष विश्लेषण किया जाना चाहिए।29 संभव है कि वेल स्प्रेड-आउट स्पेशियल पैटर्न वाले शहरों में मेट्रो में पर्याप्त घनत्व वाले कॉरिडोर्स की उचित संख्या न हो। ऐसे में मेट्रो में निवेश को सही नहीं ठहराया जा सकता। दूसरी तरफ लीनियर स्पेशियल पैटर्न वाले शहर मेट्रो परियोजनाओं के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। भारतीय शहर इस तरह से विकसित हुए हैं कि आस-पड़ोस में ही आवास, कार्यस्थल तथा सामाजिक एवं शैक्षिक सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं।27 इसके परिणामस्वरूप यात्रा की दूरी कम हो जाती है जिससे मोटर चालित शहरी परिवहन पर निर्भरता कम हो जाती है।27  मध्यम और छोटे भारतीय शहरों में औसत यात्रा की लंबाई किमी से कम हैजिससे गैर-मोटर चालित परिवहन आवागमन का पसंदीदा साधन है। औसत यात्रा दूरी 12 किमी से अधिक होने पर मेट्रो रेल प्रणालियां सफल होती हैं।27  आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने मंत्रालय से छोटे शहरों में मेट्रोलाइट और मेट्रोनियो सिस्टम के इस्तेमाल का सुझाव दिया जिनकी पूंजीगत, परिचालन और रखरखाव की लागत कम है।30  इन सिस्टम्स का निर्माण नियमित मेट्रो की लगभग 25-40% लागत पर किया जा सकता है। इसके अलावा उसने मंत्रालय को केवल उन परियोजनाओं को मंजूरी और धनराशि देने का सुझाव दिया जो किसी शहर की आबादी और यातायात की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सबसे व्यावहारिक मेट्रो टेक्नोलॉजी (जैसे मेट्रोलाइट और मेट्रोनियो) का उपयोग कर रहे हैं।30    

एनटीडीपीसी ने सुझाव दिया कि मेट्रो रेल परियोजनाएं शुरू में पांच मिलियन से अधिक आबादी वाले शहरों तक सीमित होनी चाहिए। इन शहरों को उपयोगकर्ता शुल्क या वित्तीय लागतों के माध्यम से सभी लागतों को कवर करने में सक्षम होना चाहिए। इसके अलावा उसने सुझाव दिया कि भारतीय शहरों को अपनी मौजूदा बस प्रणालियों में सुधार करनेबस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम जोड़ने और गैर-मोटर चालित परिवहन में सुधार पर ध्यान देना चाहिए। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में मेट्रो परियोजनाओं का विस्तार दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े महानगरों से अन्य अपेक्षाकृत छोटे शहरों जैसे कोच्चिलखनऊभोपालजयपुर और इंदौर तक हुआ है।

रेखाचित्र 10: जयपुर मेट्रो को ब्रेक इवन के लिए आवश्यक राइडरशिप नहीं मिल पा रही है (लाख में)

image

स्रोत: रिपोर्ट संख्या 12: मेट्रो रेल परियोजनाओं का कार्यान्वयन- एक मूल्यांकनआवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी, 7 अप्रैल, 2022; पीआरएस।      

बुनियादी सेवाएं

अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन (अमृत)

अमृत को जून 2015 में चुनिंदा 500 शहरों में शुरू  किया गया था जिसके तहत जलापूर्ति, सीवरेज और गैर-मोटर चालित शहरी परिवहन जैसी कई सेवाओं से संबंधित बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।[32]  अमृत 2.0 को अक्टूबर 2021 में पांच साल (2021-22 से 2025-26) के लिए शुरू किया गया था। अमृत 2.0 घरों में पानी की आपूर्ति प्रदान करने का प्रयास करता है। 2023-24 में अमृत को 8,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 23% अधिक है।

कार्यान्वयन में अनियमितताएं: शहरी विकास से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (20192020) ने योजना में कई अनियमितताओं पर प्रकाश डाला। उदाहरण के लिए परियोजनाओं के लिए लगातार एक ही व्यक्ति को निविदाएं दी जा रही हैं, अनावश्यक परियोजनाएं चलाई जा रही हैं और सस्ते विकल्प उपलब्ध होने पर भी उच्च लागत पर निविदाएं दी जा रही हैं।3,[33] 2020 में कमिटी ने कहा कि परियोजनाओं का कार्यान्वयन लक्ष्य से कम रहा है। दिसंबर 2022 तक क्रमशः 139 लाख और 145 लाख के लक्ष्य के विपरीत 134 लाख (96%) जल नल कनेक्शन और 102 लाख (70%) सीवर कनेक्शन प्रदान किए गए हैं।32 

तालिका 4: अमृत का आवंटन (करोड़ रुपए में)

वर्ष

बजट

वास्तविक

उपयोग

2015-16

3,919

2,702

69%

2016-17

4,080

4,864

119%

2017-18

5,000

4,936

99%

2018-19

6,000

6,183

103%

2019-20

7,300

6,391

88%

2020-21

7,300

6,448

88%

2021-22

7,300

7,280

100%

2022-23

7,300

6,500

89%

2023-24

8,000

-

-

कुल

56,199

45,304

81%

नोट: 2022-23 के वास्तविक संशोधित अनुमान हैं।
स्रोत: अनुदान मांग, आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय (2015-16 से 2023-24)पीआरएस। 

तालिका 5: अमृत के तहत प्रगति (दिसंबर 2022 तक)

 

कुल

पूर्ण

%

जारी

%

परियोजना

5,873

4,676

80

1,197

20

लागत (करोड़ रुपए) 

82,222

32,793

40

49,430

60

स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 1424लोकसभाआवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय15 दिसंबर2022पीआरएस।

स्मार्ट सिटी मिशन

जून 2015 में पांच वर्षों के लिए शुरू किया गया स्मार्ट सिटीज़ मिशन, 100 स्मार्ट शहरों को बढ़ावा देने का  प्रयास करता है जो मुख्य बुनियादी ढांचा (जैसे पानी और बिजली की आपूर्ति, स्वच्छता और सार्वजनिक परिवहन) प्रदान करते हैं। योजना को जून 2023 तक बढ़ा दिया गया है।[34] 2023-24 में मिशन को 8,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों (8,800 करोड़ रुपए) से 9% कम है। शहरी विकास से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने पाया कि स्मार्ट सिटी मिशन के लिए आवंटित राशि प्रस्तावित राशि से कम है (तालिका 6 देखें)।

तालिका 6: स्मार्ट सिटीज मिशन के लिए प्रस्तावित राशि से कम बजट आवंटन (करोड़ रुपए में)

वर्ष

प्रस्तावित

बजटीय

2017-18

13,648

4,000

2018-19

9,810

6,169

2019-20

13,971

6,450

2020-21

13,543

6,450

2021-22

10,000

6,450

स्रोत: रिपोर्ट संख्या 5: आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालयअनुदान मांग 2021-22शहरी विकास से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी8 मार्च2021पीआरएस। 

यूएलबीज़ की मिशन को कार्यान्वित करने की क्षमता: हरेक स्मार्ट सिटी में एक स्पेशल परपज वेहिकल (एसपीवी) होता है जो शहरी स्तर पर मिशन के कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार होता है। यूएलबी परियोजनाओं की योजना बनाने, उन्हें लागू करने और धन उपलब्ध कराने (केंद्र सरकार के साथ) के लिए जिम्मेदार हैं। शहरी विकास से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने कहा था कि आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य मिशन के तहत अपना वित्तीय योगदान देने में सक्षम नहीं हैं।3   कमिटी ने इस बात पर भी उल्लेख किया था कि यूएलबी स्मार्ट सिटीज मिशन जैसी योजनाओं को लागू करने में सक्षम नहीं हैं जिनके तहत सभी काम उन पर छोड़ दिए जाते हैं (जैसे योजना बनाना, परियोजनाओं को चुनना)। कमिटी ने कहा था कि यूएलबी ऐसे मिशंस को शुरू करने के लिए तैयार नहीं हैं। ऐसा यूएलबी की सीमित तकनीकी और वित्तीय क्षमता के कारण हो सकता है जैसा कि पिछले पृष्ठों में चर्चा की गई है।

कार्यान्वयन में कमियां: मिशन के तहत चुनिंदा शहरों में बुनियादी ढांचे और सेवा वितरण जैसे स्वच्छताजल आपूर्ति से संबंधित कई परियोजनाएं शुरू की जाती हैं। मिशन के लॉन्च के सात साल बाद 33% परियोजनाएं अब भी चल रही हैं (तालिका देखें)। शहरी विकास  से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2021) ने भी परियोजना के पूरा होने की धीमी गति का उल्लेख किया था। कमिटी ने मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने का सुझाव दिया था कि परियोजना को समय पर पूरा किया जाए ताकि लागत वृद्धि से बचा जा सके। कमिटी ने स्मार्ट सिटीज़ से संबंधित निर्माण कार्यों के कार्यान्वयन में कई अनियमितताओं का भी उल्लेख किया था, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रस्तावों को अंतिम रूप देने के बाद परियोजनाओं को बार-बार छोड़ना, (ii) उसी काम को फिर से करनाऔर (iii) परियोजना की लागत बाजार दर से अधिक होना। इसके अलावा कमिटी ने कहा था कि भू-स्थानिक प्रबंधन सूचना प्रणाली (रीयल टाइम मॉनिटरिंग सिस्टम) परियोजनाओं की पर्याप्त रूप से निगरानी करने में सक्षम नहीं रही है।

तालिका 7: स्मार्ट सिटीज मिशन के सात वर्षकई परियोजनाएं अब भी चालू

 

परियोजनाएं

कुल

पूर्ण

%

जारी

%

7,804

5,322

68

2,558

33

लागत (करोड़ रुपए में)

1,81,322

1,00,273

55

82,526

46

स्रोत: स्मार्ट सिटीज मिशन डैशबोर्ड (30 जनवरी2023 तक)जैसा कि 4 फरवरी2023 को एक्सेस किया गयापीआरएस।  

स्वच्छ भारत मिशन- शहरी (एसबीएम-यू) 

एसबीएम-यू को 2023-24 में 5,000 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं जो 2022-23 के संशोधित अनुमानों से 150% अधिक है। अक्टूबर 2014 में प्रारंभ एसबीएम-यू निम्नलिखित का प्रयास करता है: (i) सभी शहरी क्षेत्रों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) करना और (ii) नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) का 100% वैज्ञानिक प्रबंधन। एसबीएम-यू 2.0 को अक्टूबर 2021 में शुरू किया गया था। यह स्रोत पर ठोस कचरे को अलग करनेकचरे के वैज्ञानिक प्रसंस्करण और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए डंपसाइट्स में सुधार पर केंद्रित है।

पर्याप्त प्रगति नहीं: 2019 में सभी शहरी क्षेत्रों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया था।[35] हालांकि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (2019-21) के अनुसार, 19.5% शहरी परिवारों को बेहतर सैनिटेशन की सुविधा उपलब्ध नहीं है (इसमें फ्लश टू पाइप्ड सीवर सिस्टमफ्लश टू सैप्टिक टैंक, ट्विन पिट/कंपोस्टिंग टॉयलेट शामिल हैं जिसे किसी अन्य परिवार के साथ साझा नहीं किया जाता है)।[36]  मिशन के तहत, राज्यों में व्यक्तिगत घरेलू और सामुदायिक शौचालयों का निर्माण किया जाता है। हालांकि विभिन्न राज्यों में इनका निर्माण भिन्न-भिन्न है। महाराष्ट्र और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में लक्ष्यों से अधिक हासिल किया गया है और कुछ ऐसे राज्य भी हैं, जैसे पश्चिम बंगाल और मेघालय, जहां लक्ष्य पूरे नहीं किए जा सके। उदाहरण के लिए 25 जनवरी, 2023 तक, पश्चिम बंगाल में 55% व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का निर्माण किया गया है और 22% सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण किया गया है (निर्मित शौचालयों की संख्या पर राज्यवार विवरण के लिए अनुलग्नक में तालिका 8 देखें)।

रेखाचित्र 11: कुछ राज्यों में शौचालय निर्माण के लक्ष्य पूरे नहीं हुए (25 जनवरी, 2023 तक)

image  

स्रोत: एसबीएम (यू) डैशबोर्डआवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालयजैसा कि 25 जनवरी2023 को एक्सेस किया गयापीआरएस। 

व्यवहारगत बदलाव लाने के लिए धनराशि का पूरा उपयोग नहीं किया गयाशौचालयों के निर्माण के अलावा एसबीएम-यू खुले में शौच को समाप्त करने के लिए व्यवहारगत बदलाव लाने, तथा साफ-सफाई रखने, शौचालय के उचित उपयोग एवं रखरखाव इत्यादि के संबंध में जागरूकता फैलाने पर भी केंद्रित है।[37]  उसी के अनुसार, मिशन के विज्ञापन और प्रचार के लिए धनराशि आवंटित की जाती है। हालांकि आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा था कि विज्ञापन और प्रचार के लिए धनराशि का पूरा उपयोग नहीं गया है (देखें रेखाचित्र 12))।[38] व्यवहारगत बदलाव को बढ़ावा देने में विज्ञापन और प्रचार प्रमुख कारक होते हैं। 2020-21 और 2021-22 में आवंटित धनराशि में से लगभग किसी का भी उपयोग नहीं किया गया। आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (2022) ने कहा है कि शहरों को खुले में शौच से मुक्त घोषित करना ही काफी नहीं है और मंत्रालय को मिशन के बारे में जागरुकता फैलाना जारी रखना चाहिए।9 मंत्रालय ने इस पर कहा कि उसे राज्यों से विज्ञापन और प्रचार के लिए मांग प्रस्ताव नहीं मिला, और इसी कारण धनराशि का पूरा उपयोग नहीं हो पाया। 

रेखाचित्र 12: एसबीएम-यू के लिए विज्ञापन और प्रचार के लिए धन का उपयोग 

image

नोट: 2021-22 के आंकड़े 31 दिसंबर2021 तक के हैं।
स्रोत: रिपोर्ट संख्या 12: आवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय, अनुदान मांग (2022-23), आवासन एवं शहरी मामलों से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी24 मार्च2022पीआरएस।   

अनुलग्नक

तालिका 8: एसबीएम-यू के तहत निर्मित शौचालय (25 जनवरी, 2023 तक)

राज्य/यूटी

लक्ष्य

निर्माण

   
 

व्यक्तिगत घरेलू शौचालय

सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय

व्यक्तिगत घरेलू शौचालय

सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय

व्यक्तिगत घरेलू शौचालयों का लक्ष्य पूरा हुआ (%)

सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों का लक्ष्य पूरा हुआ (%)

अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह

336

126

336

609

100

483

आंध्र प्रदेश

1,93,426

21,464

2,43,764

17,799

126

83

अरुणाचल प्रदेश

12,252

387

9,743

46

80

12

असम

75,720

3,554

78,137

3,356

103

94

बिहार

3,83,079

26,439

3,93,613

27,820

103

105

चंडीगढ़

4,282

976

6,117

2,512

143

257

छत्तीसगढ़

3,00,000

17,796

3,26,428

18,832

109

106

दिल्ली

5,000

11,138

725

28,256

15

254

गोवा

8,020

507

3,800

1,270

47

250

गुजरात

4,06,388

31,010

5,60,046

24,149

138

78

हरियाणा

71,000

10,393

66,638

11,374

94

109

हिमाचल प्रदेश

11,266

876

6,743

1,700

60

194

जम्मू एवं कश्मीर

59,600

3,585

51,246

3,451

86

96

झारखंड

1,61,713

12,366

2,18,686

9,643

135

78

कर्नाटक

3,50,000

34,839

3,93,278

36,556

112

105

केरल

29,578

4,801

37,207

2,872

126

60

लद्दाख

400

194

400

194

100

100

मध्य प्रदेश

5,12,380

40,230

5,79,541

20,343

113

51

महाराष्ट्र

6,29,819

59,706

7,14,978

1,66,465

114

279

मणिपुर

43,644

620

39,240

581

90

94

मेघालय

5,066

362

1,604

152

32

42

मिजोरम

16,441

491

12,373

1,324

75

270

नगालैंड

23,427

478

19,847

238

85

50

ओडिशा

1,32,509

17,800

1,42,551

12,211

108

69

पुद्दूचेरी

5,681

1,204

5,162

836

91

69

पंजाब

1,02,000

10,924

1,03,683

11,522

102

105

राजस्थान 

3,61,753

26,364

3,68,515

31,300

102

119

सिक्किम

1,587

142

1,398

268

88

189

तमिलनाडु

4,37,543

59,921

5,08,562

92,744

116

155

तेलंगाना

1,63,508

15,543

1,57,165

15,465

96

99

त्रिपुरा

19,464

586

20,935

1,089

108

186

उत्तर प्रदेश

8,28,237

63,451

8,97,697

70,370

108

111

उत्तराखंड

27,640

2,611

24,000

4,642

87

178

पश्चिम बंगाल

5,15,000

26,484

2,82,542

5,746

55

22

कुल

58,97,759

5,07,368

62,76,700

6,25,735

106

123

स्रोत: स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) डैशबोर्डजैसा कि 25 जनवरी2023 को एक्सेस किया गयापीआरएस। 

तालिका 9: 23 जनवरी, 2023 तक पीएमएवाई-यू की प्रगति

राज्य/यूटी

मकानों की भौतिक प्रगति

वित्तीय प्रगति (करोड़ रुपए में)

 

स्वीकृत

निर्माणाधीन*

पूर्ण/सौंपे गए *

निवेश

केंद्रीय सहायता

         

स्वीकृत

जारी

अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह

378

378

47

96

6

2

आंध्र प्रदेश

20,74,765

19,25,908

6,67,334

89,212

31,622

17,803

अरुणाचल प्रदेश

9,002

8,570

5,610

511

190

146

असम

1,61,476

1,50,799

71,466

4,931

2,446

1,314

बिहार

3,27,315

3,09,603

1,01,567

18,540

5,153

2,571

चंडीगढ़

1,271

1,202

1,202

262

29

28

छत्तीसगढ़

3,06,034

2,61,890

1,60,957

13,833

4,850

3,513

दिल्ली

30,194

28,709

28,683

5,645

697

660

दादरा एवं नगर हवेली/दमन एवं दीव

10,480

9,852

8,368

941

222

192

गोवा

3,150

2,995

2,987

692

75

71

गुजरात

10,60,376

9,40,724

7,92,574

1,05,706

21,913

17,126

हरियाणा

1,66,671

91,982

58,697

15,750

2,954

1,426

हिमाचल प्रदेश

13,249

12,880

8,863

910

241

179

जम्मू एवं कश्मीर

49,146

47,376

16,673

2,695

756

369

झारखंड

2,34,369

2,08,787

1,17,559

11,646

3,687

2,535

कर्नाटक

7,06,320

5,72,101

2,94,209

51,984

11,588

6,257

केरल

1,66,661

1,34,089

1,06,998

8,928

2,760

1,936

लद्दाख

1,366

1,015

647

68

31

22

मध्य प्रदेश

9,60,256

9,05,806

5,93,867

54,059

15,823

12,894

महाराष्ट्र

15,11,989

10,38,133

7,34,673

1,88,340

27,691

16,356

मणिपुर

56,037

47,352

9,427

1,446

841

436

मेघालय

4,759

3,780

1,101

187

72

30

मिजोरम

40,756

38,710

6,102

950

625

206

नगालैंड

32,335

31,880

11,339

1,050

511

307

ओडिशा

2,13,845

1,70,518

1,19,377

9,874

3,344

2,091

पुद्दूचेरी

16,394

16,036

7,662

948

258

173

पंजाब

1,32,895

1,05,882

63,851

9,240

2,339

1,546

राजस्थान 

2,76,746

2,00,245

1,58,326

23,429

5,263

3,780

सिक्किम

704

592

209

35

12

7

तमिलनाडु

6,88,854

6,32,765

4,93,176

48,883

11,253

8,885

तेलंगाना

2,49,465

2,40,454

2,18,362

30,701

4,466

3,146

त्रिपुरा

94,162

82,643

63,038

2,988

1,514

1,146

उत्तर प्रदेश

16,89,673

15,39,266

11,99,343

83,665

26,638

21,018

उत्तराखंड

62,762

48,453

27,292

4,885

1,159

732

पश्चिम बंगाल

6,91,146

5,42,425

3,09,258

38,339

11,094

6,627

कुल

120 लाख**

108 लाख*

68 लाख*

लाख करोड़

लाख करोड़

लाख करोड़

नोट: *इसमें मिशन अवधि के दौरान जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन के पूर्ण (3.41 लाख)/निर्माणाधीन (4.01 लाख) घर शामिल हैं; ** 31 मार्च2022 तक स्वीकृत 122.69 लाख घरों में से 2.24 लाख नॉन-स्टार्टर घरों को कुछ राज्यों द्वारा घटा दिया गया हैजिसके लिए राज्यों को मार्च 2023 तक नए प्रस्ताव देने हैं।
स्रोतः प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)- सभी के लिए आवास (एचएफए) राज्य/केंद्र शासित क्षेत्रों की प्रगति, 23 जनवरी
2023 तकपीआरएस। 

तालिका 10: कार्यों के हस्तांतरण की स्थिति (मार्च 2020 तक)

राज्य/यूटी

हस्तांतरित कार्यों की संख्या

राज्य/यूटी

हस्तांतरित कार्यों की संख्या

आंध्र प्रदेश

17

मध्य प्रदेश

18*

अरुणाचल प्रदेश

13*

महाराष्ट्र

18

असम

12

मणिपुर

07*

बिहार

7

मेघालय

16*

चंडीगढ़

13*

मिजोरम

12*

छत्तीसगढ़

18

नगालैंड

03*

दादरा और नगर हवेली

11

ओडिशा

18

दमन और दीव

16

पुदुचेरी

17

दिल्ली

13

पंजाब

18

गोवा

10*

राजस्थान 

18

गुजरात

16

सिक्किम

6

हरियाणा

18

तमिलनाडु

17

हिमाचल प्रदेश

16

तेलंगाना

18

जम्मू एवं कश्मीर और लद्दाख

18

त्रिपुरा

15*

झारखंड

14

उत्तर प्रदेश

8

कर्नाटक

17

उत्तराखंड

14*

केरल

18

पश्चिम बंगाल

16*

नोट: *सुधार मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशनमार्च 2014।
स्रोत: अतारांकित प्रश्न संख्या 4211, लोकसभाआवासन एवं शहरी मामलों का मंत्रालय19 मार्च2020पीआरएस।

[1] Budget 2023-24, Speech of Nirmala Sitharaman Minister of Finance, February 1, 2023, https://www.indiabudget.gov.in/doc/Budget_Speech.pdf

[2] Note on Demands for Grants 2023-24, Demand No. 60, Ministry of Housing and Urban Affairs, https://www.indiabudget.gov.in/doc/eb/sbe60.pdf

[3] Report No. 5: Ministry of Housing and Urban Affairs, Demand for Grants 2021-22, Standing Committee on Urban Development, March 8, 2021, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Housing%20and%20Urban%20Affairs/17_Urban_Development_5.pdf

[4] “Report on Indian Infrastructure and Services”, High Powered Expert Committee for estimating the investment requirement for urban infrastructure services, March 2011, https://icrier.org/pdf/FinalReport-hpec.pdf

[5] Annual Financial Statement of the central government, 2022- 23, Government of India, https://www.indiabudget.gov.in/doc/AFS/allafs.pdf

[6] State Finances: A Study of Budgets 2021-22, Reserve Bank of India, November 30, 2021, https://rbi.org.in/Scripts/AnnualPublications.aspx?head=State%20Finances%20:%20A%20Study%20of%20Budgets.

[7] “Guidance on use of Municipal Bond Financing for Infrastructure projects”, Department of Economic Affairs, Ministry of Finance, September 2017, https://www.pppinindia.gov.in/documents/20181/33749/Guidance+on+use+of+Municipal+Bonds+for+PPP+projects.pdf/037cb143-8305-4c57-8f3c-32e5a329297f

[8] Unstarred Question No. 559, Lok Sabha, Ministry of Housing and Urban Affairs, July 22, 2021, https://pqals.nic.in/annex/176/AU559.pdf.  

[9] Report No. 12: Ministry of Housing and Urban Affairs, Demand for Grants 2022-23, Standing Committee on Housing and Urban Affairs, March 24, 2022,  https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Housing%20and%20Urban%20Affairs/17_Housing_and_Urban_Affairs_12.pdf

[10] “Subject- Incentive to Urban Local Bodies (ULBs), which are covered under Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation (AMRUT) for issuance of Municipal Bonds”, Letter to Principal Secretaries of states/UTs, Ministry of Housing and Urban Affairs, March 23, 2018, http://amrut.gov.in/upload/oms/5ad83b6e6e622bondletter2018.pdf.  

[11] Unstarred Question No. 1336, Rajya Sabha, Ministry of Housing and Urban Affairs, December 19, 2022, https://pqars.nic.in/annex/258/AU1336.pdf

[12] Article 243I, The Constitution of India, https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf.  

[13] Volume 1, Report of the 15th Finance Commission for 2021-26, February 2021, https://fincomindia.nic.in/writereaddata/html_en_files/fincom15/Reports/XVFC%20VOL%20I%20Main%20Report.pdf.

[14] State of Municipal Finances in India, ICRIER, A Study commissioned by 15th Finance Commission, March 2019, https://fincomindia.nic.in/ShowContentOne.aspx?id=27&Section=1.  

[15] Report on Municipal Finances, Reserve Bank of India, 2022, https://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/RMF101120223A34C4F7023A4A9E99CB7F7FEF6881D0.PDF.  

[16] Article 243Y, The Constitution of India, https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf.  

[17] Article 243W, The Constitution of India, https://legislative.gov.in/sites/default/files/COI.pdf

[18] “Performance audit of Implementation of 74th Constitutional Amendment Act”, Government of Karnataka Report No. 2 of the year 2020, Comptroller and Auditor General of India, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2020/Full%20report%20%20English-05f757c1f8c7e46.52858465.pdf

[19] “Performance Audit on Efficacy of implementation of 74th Constitutional Amendment Act,” Government of Rajasthan Report No. 5 of the year 2021, Comptroller and Auditor General of India, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2021/Full%20Report-English-74th%20CAA-0622b24e8505c47.07308141.pdf

[20] Pradhan Mantri Awas Yojana (Urban) - Housing for All (HFA) States/UTs wise Progress, as on January 23, 2023.

[21] Starred Question No. 58, Rajya Sabha, Ministry of Housing and Urban Affairs, December 12, 2022,   https://pqars.nic.in/annex/258/AS58.pdf

[22] Report of the Comptroller and Auditor General of India, Performance Audit of Implementation of Housing Schemes for Urban Poor in Karnataka, Comptroller and Auditor General of India, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2021/HFA%20ENGLISH-06334255952f936.86422917.pdf

[23] Pradhan Mantri Awas Yojana (Urban), Scheme Guidelines, January 2021, Ministry of Housing and Urban Affairs, https://pmay-urban.gov.in/uploads/guidelines/62381c744c188-Updated-guidelines-of-PMAY-U.pdf

[24] Unstarred Question No. 1359, Rajya Sabha, Ministry of Housing and Urban Affairs, March 14, 2022, https://pqars.nic.in/annex/256/AU1359.pdf

[25] Performance Audit of Implementation of Housing Schemes for Urban Poor in Karnataka, Government of Karnataka, Report No. 4 of 2022, https://cag.gov.in/uploads/download_audit_report/2021/HFA%20ENGLISH-06334255952f936.86422917.pdf.

[26] NTDPC’s Approach to Transport Policy, National Transport Development Policy Committee, 2013, http://www.aitd.net.in/NTDPC/volume2_p1/approach_v2_p1.pdf

[27] Chapter 5- Urban Transport, National Transport Development Policy Committee, 2013, http://www.aitd.net.in/NTDPC/voulme3_p2/urban_v3_p2.pdf 

[28] National Urban Transport Policy, 2006, https://mohua.gov.in/upload/uploadfiles/files/TransportPolicy.pdf

[29] Metro Rail Policy, 2017, https://mohua.gov.in/upload/whatsnew/59a3f7f130eecMetro_Rail_Policy_2017.pdf

[30] Report No. 13: Implementation of Metro Rail Projects - An Appraisal, Standing Committee on Housing and Urban Affairs, April 7, 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Housing%20and%20Urban%20Affairs/17_Housing_and_Urban_Affairs_13.pdf

[31] Report No. 16: Action Taken by the Government on the recommendations contained in the Thirteenth Report (Seventeenth Lok Sabha) of the Standing Committee on Housing and Urban Affairs (2021-2022) on the subject, ‘Implementation of Metro Rail Projects – An Appraisal’, Standing Committee on Housing and Urban Affairs, December 20, 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Housing%20and%20Urban%20Affairs/17_Housing_and_Urban_Affairs_16.pdf

[32] “AMRUT Scheme” Press Information Bureau, Ministry of Housing and Urban Affairs, December 22, 2022, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1885837#:~:text=Atal%20Mission%20for%20Rejuvenation%20and,and%20towns%20across%20the%20country

[33] Report No. 5: Demands For Grants (2020-2021), Ministry of Housing and Urban Affairs, Standing Committee on Urban Development, March 3, 2020, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Housing%20and%20Urban%20Affairs/17_Urban_Development_2.pdf

[34] 3,131 Smart City projects worth ₹ 53,175 crore have been completed”, Press Information Bureau, Ministry of Housing and Urban Affairs, November 29, 2021, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1776077

[35] Cabinet approves the continuation of Swachh Bharat Mission (Urban) (SBM U) till 2025-26 for sustainable outcomes” Press Information Bureau, Union Cabinet, October 12, 2021, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1763354

[36] National Family Health Survey - 5 2019-21, India Fact Sheet, Ministry of Health and Family Welfare, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5_FCTS/India.pdf

[37] Guidelines for Guidelines for Swachh Bharat Mission, Revised as on 5th October 2017, Ministry of Housing and Urban Affairs, http://swachhbharaturban.gov.in/writereaddata/SBM_Guideline.pdf

[38] Report No. 15: Action Taken by the Government on the Recommendations contained in the Twelfth Report (Seventeenth Lok Sabha) of the Standing Committee on Housing and Urban Affairs on the 'Demands for Grants (2022-23) of the Ministry of Housing and Urban Affairs’, Standing Committee on Housing and Urban Affairs, Standing Committee on Housing and Urban Affairs, August 8, 2022, https://loksabhadocs.nic.in/lsscommittee/Housing%20and%20Urban%20Affairs/17_Housing_and_Urban_Affairs_15.pdf 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्रअलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।